आज की दौर मैं जहा दुनिया एक वैसेविक माहमारी से गुजर रहा है वहा, दो बड़े देश आपस मैं सिर्फ इस बात पर लड़ रहे है की वो अपना सर किस जगह झुकायेंगे, इस्रायल और फिलिस्तीन दोनों देशो में कुछ दिनों से भारी तनाव है . यहाँ रोज़ लोग मर रहे है बेघर हो रहे है. 10 मई को यरुशलम में स्थित अल-अक्सा मस्जिद में फिलिस्तीनियों और इजरायली सुरक्षा बलों के बीच झड़प शुरू हुई थी. इसमें दर्जनों फिलिस्तीनी प्रदर्शनकारी घायल हो गए. वहीं फिलिस्तीन के चरमपंथी गुट इजरायल पर ताबड़तोड़ रॉकेट दाग रहे हैं. लेकिन इजरायल की मिसाइल रोधी सिस्टम के चलते उसे उतना नुकसान नहीं पहुंच पा रहा है जितना इजरायल के हमले से गाजा को हो रहा है। लड़ाई कल भी धर्म की ही थी और आज भी धर्म की ही है, एक बार अमेरिका के प्रथम प्रेसिडेंट अब्राहम लिंकन ने कहा था की व्हेन ऑय डू गुड ऑय फील गुड एंड व्हेन ऑय डू बैड ऑय फील बैड एंड थॉट्स माय रिलिजन. मतलब जब आप कुछ अच्छा करते है आप अच्छा महसूस करते है और जब आप कुछ बुरा करते है तो बुरा महसूस करते है और यही धर्म है भाषा जितने सरल है बात में गहराई उतनी ही ज्यादा है, धर्म लोगो को जोडने के लिए बना है तोड़ने के लिए नहीं, इन देशो की लड़ाई आज से बहुत साल पहले ही शरू हो चकी थी। सही मायनो में इजरायल और फिलिस्तीन के विवाद की जड़ें ईसा पूर्व से पहले तक जाती हैं। चूंकि बाइबल में भगवान ने इजरायल के इलाके को यहूदियों के लिए चुना था, इसलिए वे इसे पूरी दुनिया के यहूदियों का घर मानते हैं। हालांकि उन्हें कई बार यहां से बेदखल होना पड़ा है और कई अत्याचारों का सामना करना पड़ा है।
वहीं फिलिस्तीनी लोगों का कहना है कि चूंकि वे हमेशा से यहां के मुख्य निवासी हैं, इसलिए इस जगह पर उनका अधिकार है। जेरूसलम की इस्लाम, यहूदी और ईसाई तीनों धर्मों में बड़ी मान्यता है और यह इजरायल और फिलिस्तीन के इस विवाद का केंद्र है। पूर्वी जेरूसलम में अल-अक्सा मस्जिद है जिसे इस्लाम में तीसरी सबसे पवित्र जगह माना जाता है। वहीं मस्जिद के परिसर में टेंपल माउंट नामक एक दीवार है जो यहूदियों के लिए सबसे पवित्र है।
अभी यहूदियों को इलाके में घुसने की इजाजत नहीं है जो उनमें रोष का कारण बनता है। फिलिस्तीनी मस्जिद आ-जा सकते हैं। और यही से शुर होती है इनकी नफरत की लड़ाई, जिसका अंजाम आज पूरी दुनिया देख रही है, पिछले एक साल से पूरा विश्व कोरोना से तरसता रहा है और इससे इस्राएलीस भी बचे नहीं है लाखो की संख्या में यहाँ भी लोगो ने इस बिम्मरि से जान गवाई है, लेकिन जिन मुदो को बातो से हल किया जा सकता है उन् मुदो के लिए वापस से लाशो के ढेर लागए जा रहे है बच्ये , बूढ़े, औरते मासूमो को बेवाज घर से निकल केर मारा जा रहा है, तो सवाल यह है की अगर इंसान ज़िंदगीय इतने ही सस्ती है तो कोरोना जैसे बीमारी से बचाव की क्या जरुअत, देश लोगो से बनता है लाशो से नहीं, यहाँ की सरकरो को यह समझना होगा, इससे पहले की बहुत देर हो जाए.
हालांकि युद्ध के बादल अब तक शांत नहीं हुए है लेकिन हमे यहाँ एक मिनट की लिए रुक कर खुद से सोचना चाहिए की क्या यह सही है, जब पुरे विश्व को एकजुट होना चाहिए तभी ऐसी तबाही, क्या हमने अब तक विश्वा युद्ध एक और दो से कुछ नहीं सीखा इन्सानी जान की कीमत आज भी धर्म की ठेकेदार ही तोलते रहेंगे । अगर जल्द यह मसला नहीं सुलझा तो पूरी दुनिया तीसरे विस्वा युद्ध के कागार पर आ के खड़ी हो जायगी और जहा से इंसानियत को बचाना नामुकिन हो जायगा ॥